Monday, November 16, 2009

बिहार की सांस्कृतिक धरोहर है बाढ़

बिहार की राजधानी पटना से करीब ६५ किलोमीटर पूरब में बसा है बाढ़ अनुमंडल । बाढ़ , बिहार का सबसे सबसे पुराना और संभवत सबसे बड़ा अनुमंडल है। सन १८६४ इसवी में बाढ़ को अनुमंडल का दर्जा हासिल हुआ। इसे पूर्वी पटना के नाम से भी जाना जाता है। बख्तियारपुर से लेकर मोकामा तक करीब ७० किलोमीटर के दायरे में फैले बाढ़ शहर के उत्तर में गंगा नदी बहती है। दक्षिण में इसकी सीमाए शेखपुरा और नालंदा जिला को छूती है। जबकि पूरब में लखीसराय और बेगुसराई जिले की सीमा तक बाढ़ का इलाका फैला हुआ है। सात प्रखंड और चौदह थानों को मिलाकर बने बाढ़ अनुमंडल का क्षेत्रफ़ल करीब ९२८६६ वर्ग हेक्टेयेर है। २००१ की जनगणना के मुताबिक बाढ़ की कुल आबादी करीब साढे नौ लाख की है। बाढ़ की साक्षरता दरकरीब प्रतिशत है। अनुमंडल की अधिकांश आबादी खेती की आजीविका पर ही निर्भर है। अनुमंडल का तक़रीबन सत्तर फीसदी भू भाग खेती लायक है। इसे ताल भी कहा जाता है। टाल का अर्थ है जमीं का सबसे निचला इलाका । इस इलाका दलहन की खेती के लिए मशहूर है। बाढ़ का एतिहासिक  सांस्कृतिक व राजनैतिक महत्व देशभर में चर्चित रहा है। कालांतर में बाढ़ बिहार की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जानी जाती थी। साहित्यकारों,नात्याकारो,स्वतंत्रता सेनानियों तथा सुर्विरो की भूमि रही है बाढ़ । बाढ़ का नामकरण बाढ़ कैसे हुआ , इसे लेकर भी कई कहानिया प्रचलित है। कुछ लोगो का मत है की मुग़लकाल में बादशाह Aaurangjeb  की बहन जहा आरा ,जलमार्ग से होकर गुजर रही थी। तभी, वर्तमान के बाँध रोड के पास जलदस्युओ ने जहा आरा को घेरकर जमकर लूटपाट मचाई और उसका कतल कर दिया। इसकी ख़बर मिलते ही बादशाह अकबर के सिपाहियों ने इस जगह जमकर खून बहाया। कहा जाता है की मुगलों ने खून बहाकर बाढ़ की स्थिति ला दिया था । तभी से इस जगह को बाढ़ के नाम से जाना जाता है। हलाकि इसे कोई एतिहासिक प्रमाण नही मिलते है। कुछ लोगो का मत है की कालान्तर में इस जगह भीषण जल्सैलब आया था। जिसमे लाखो लोग प्रभावित हुए थे। जान माल की काफी क्षति हुई थी। तभी से इसे बाढ़ के रूप में जाना जाता है।
नाटकों का गाँव है पंडारक --
राजधानी पटना से करीब ८० किलोमीटर पूरब में बसा एतिहासिक नगरी है  पंडारक . पंडारक का प्राचीन नाम पुन्यार्क है. पुण्य अर्क से तात्पर्य है देवो की भूमि से. इस गाँव में दुआपर युग में स्थापित भगवान् सूर्य का मंदिर अवस्थित है. मान्यता है की भगवन श्रीकृष्ण के पुत्र रजा साम्ब ने श्राप से मुक्त होने के बाद इस स्थल पर सूर्य मंदिर की स्थापना की थी. यह मंदिर एतिहासिक धरोहर है.  वैसे पंडारक गाँव नाटको का गाँव के रूप में भी चर्चित रहा है. इस गाँव में पिछले करीब डेढ़ सौ सालो से पुरे गाँव के लोग नाटको का मंचन करते है. टीवी फिल्म के बढ़ते प्रचालन के बाद भी पंडारक में नाटक का मंचन देख भारतीय संकृति जीवन हो उठती है. पंडारक में करीब एक दर्जन नाट्य संस्थाए कम कर रही है. इनमे हिंदी नाटक समाज की स्थापना १९२२ में की गयी थी. महँ क्रन्तिकारी चौधरी रामप्रसाद शर्मा जी ने ग्रामीणों में देशप्रेम का जज्बा भरने के लिए नाट्य मंच बनाया और नाटको के माध्यम से वह ग्रामीणों में आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरणा भरते थे. बाद में इस नाट्य मंच को उनके वारिशों ने सहेजा और आज यह प्रदेश की धरोहर बन गयी है. इसके साथ ही किरण कला निकेतन पुनायार्क कला निकेतन, समेत कई नाट्य संस्थाएं यहाँ कार्यरत है. हर साल दशहरे के मौके पर पूरा गाँव नाटको की तयारी में जुट जाता है. गो से बाहर रहनेवाले ग्रामीण भी अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए दशहरे में घर आ जाते है. देश का यह संभवत इकलौता गाँव होगा जनन के अभिभावक अपने बेटे को नाटक खेलने और नाटको के जरिये भविष्य निर्माण की प्रेरणा देते हो. नाटको के साथ ही पंडारक गाँव कुश्ती के लिए भी मशहूर है. दशहरा पूजा की समाप्ति के बाद पंडारक में हर साल कुश्ती दंगल आयोजित होते है. जिसमे देशभर के दिग्गज पहलवानों का जतन होता है. पंडारक गाँव अपने आप में एक समृद्ध व खुशहाल गाँव है. अधिकांश लोग यहाँ किसान ही है. देश के मशहूर उद्योगपति व आम्रपाली ग्रुप ऑफ़ बिल्डिंग एंड housing के सीएमडी अनिल शर्मा मूलतः पंडारक गाँव के रहनेवाले है.

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