Tuesday, August 17, 2010

महाकवि का यूँ चले जाना............................
अचानक से ध्यान जाता है. पर यकीन एकदम से नहीं हो पाता की कवि जी अब रहे नहीं. सबलोग उन्हें कवि जी कहकर ही बुलाया करते थे . बात दरअसल १२ अगस्त की है. कवि जी के घर पर साहित्यकारों का जमावड़ा लगा हुआ था. कवि और साहित्यकार, अधिकांश लोग उसी मगही भाषा के ,जिसे कवि जी ने पैदा भले ही न किया हो,लेकिन पालन पोषण भरपूर किया. मगही भाषा को कवि डॉ योगेश्वर सिंह ने साहित्य की उन बुलंदियों तक पहुंचा दिया .जहाँ हर मगहिया आदमी खुद को मगही कहलाने में गौरव महसूस करता है. खैर , अखिल भारतीय मगही सम्मलेन का आयोजन चल रहा था. बिहार के अलावे यू पी

Sunday, June 27, 2010

दादा फिरू आसबे........
वो दृश्य बड़ा ही कारुणिक था . ६० साल का बुजुर्ग इस कदर रो रहा था मानो वो कोई बच्चा हो.बच्चे भी शायद इतने जज्बाती नहीं होते होंगे. स्टेशन के प्लेटफोर्म पर तिल रखने की जगह भी नहीं थी. लोग एक दुसरे से पूछ रहे थे...क्या हुआ है. कोई आनेवाला है क्या. थोड़ी देर की ख़ामोशी . फिर आवाज आती. दादा का शव आनेवाला है. दादा का नाम सुननेवाला वहीँ रुक जाता .. और देखते ही देखते स्टेशन पर तैयार हो जाती है एक लम्बी जमात. वो जमात जिसकी कोई जात नहीं थी. जिसकी कोई लालसा भी नही. एक ऐसी जमात जो केवल अपने दादा के पार्थिव पर एक फुल रखना चाह रहा था. कोई एक नजर देख लेने भर को आतुर था. असल में ये दादा कोई और नहीं.हरदिल अजीज गिद्धौर के सांसद दिग्विजय सिंह थे. यह दादा का व्यक्तित्व ही था जो उनके मौत की खबर से न सिर्फ गिद्धौर बल्कि पुरे देश की एक बड़ी आबादी आहात हो गयी. पटना से सटे बाढ़ में दादा के चाहनेवालो की कोई कमी नहीं थी. भीड़ में मौजूद कई ऐसे लोग भी थे जिन्होंने कभी शायद दादा को देखा तक नहीं था.मगर उनकी आँखों में पानी कम न था. दादा के बिछुड़ने का गम साफ दिखाई दे रहा था. सफ़ेद दाढ़ी,वाले ७० साल का एक बुड्ढा स्टेशन के एक न. प्लेटफोर्म पर दोनों हाथो में गेंदा की माला लिए घंटे भर से खड़ा था. पैर में सफ़ेद रंग की हवाई चप्पल पहनी थी. भीड़ में वो खुद असहाय महसूस कर रहा था . उचक उचक कर वो ट्रेन के आने का इंतजार karta