महाकवि का यूँ चले जाना............................
अचानक से ध्यान जाता है. पर यकीन एकदम से नहीं हो पाता की कवि जी अब रहे नहीं. सबलोग उन्हें कवि जी कहकर ही बुलाया करते थे . बात दरअसल १२ अगस्त की है. कवि जी के घर पर साहित्यकारों का जमावड़ा लगा हुआ था. कवि और साहित्यकार, अधिकांश लोग उसी मगही भाषा के ,जिसे कवि जी ने पैदा भले ही न किया हो,लेकिन पालन पोषण भरपूर किया. मगही भाषा को कवि डॉ योगेश्वर सिंह ने साहित्य की उन बुलंदियों तक पहुंचा दिया .जहाँ हर मगहिया आदमी खुद को मगही कहलाने में गौरव महसूस करता है. खैर , अखिल भारतीय मगही सम्मलेन का आयोजन चल रहा था. बिहार के अलावे यू पी
Tuesday, August 17, 2010
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